Friday, November 16, 2012

मान गया मैं ... मान गया अपनी हार,
तुम्हे ठुकराकर मैंने स्वयं पर किया प्रहार/

मेरे हृदयाकाश में ढककर रखना चाहा तुमने,
पर सह न सका तुम्हारा यह रूप बारम्बार/

लगा परछाईं-सा चलता मेरे पीछे-पीछे मेरा
पिछला जीवन, माया मुरली टेर बुलाती है,
मुझे पीड़ा देती बेकार की, निरंतर दिन-दिन/
उससे तोड़ लिए मैंने सारे नाते/
सर्वस्व दे दिया तुम्हारे हाथों में
अपने जीवन का भार/
मान गया मैं ... मान गया अपनी हार/

                                                 रविन्द्रनाथ