Thursday, January 4, 2018

मित्रों हर्ष के साथ हमारे हिन्दी विभाग की वार्षिक पत्रिका 2017 का कवर पेज आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ। 

Monday, June 15, 2015


मित्रों हर्ष के साथ हमारे हिन्दी विभाग की वार्षिक पत्रिका का कवर पेज आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ। साथ ही यह भी सूचना है कि पत्रिका का पहला अंक आगामी 15 अगस्त को प्रकाशित होने चला है जिसके लिए शोध पत्र आमंत्रित हैं। शोध पत्र वर्ड फॉर्मेट में टाइप करके 30 जून तक ratanmizoram@gmail.com में भेजें। शोध पत्र हिन्दी अथवा अंग्रेजी में किसी भी विषय को लेकर लिख कर सकते हैं।

Friday, November 16, 2012

मान गया मैं ... मान गया अपनी हार,
तुम्हे ठुकराकर मैंने स्वयं पर किया प्रहार/

मेरे हृदयाकाश में ढककर रखना चाहा तुमने,
पर सह न सका तुम्हारा यह रूप बारम्बार/

लगा परछाईं-सा चलता मेरे पीछे-पीछे मेरा
पिछला जीवन, माया मुरली टेर बुलाती है,
मुझे पीड़ा देती बेकार की, निरंतर दिन-दिन/
उससे तोड़ लिए मैंने सारे नाते/
सर्वस्व दे दिया तुम्हारे हाथों में
अपने जीवन का भार/
मान गया मैं ... मान गया अपनी हार/

                                                 रविन्द्रनाथ


Friday, March 23, 2012

एक उत्तम तर्क!!

पढ़ें!! जरूरी .. ::: एक उत्तम तर्क!!
याद आती है .... एक एक शब्द भी नहीं ** यह बहुत अच्छा है
दर्शन की एक नास्तिक प्रोफेसर समस्या पर अपनी कक्षा के लिए बोलती हैविज्ञान भगवान के साथ है, सर्वशक्तिमान.वह अपने नए छात्रों के लिए खड़े और पूछता है .....प्रोफेसर:तो आप भगवान में विश्वास करते हो?
छात्र: बिल्कुल, श्रीमान.प्रोफेसर: भगवान अच्छा है?
छात्र: ज़रूर.
प्रोफेसर: भगवान सर्वशक्तिमान है?
छात्र: हाँ ..
प्रोफेसर: मेरा भाई कैंसर की मृत्यु हो गई, भले ही वह ईश्वर से प्रार्थना की उसे चंगा.हम में से ज्यादातर के लिए दूसरों को, जो बीमार हैं मदद करने का प्रयास करेंगे. लेकिन नहीं भगवान.कैसे हैयह तो अच्छा भगवान है? हम्म?(छात्र चुप है.)
प्रोफेसर: आप का जवाब नहीं कर सकते हैं, आप कर सकते हैं? चलो फिर से शुरू, युवा लड़के. भगवान अच्छा है?
छात्र: हाँ.
प्रो: शैतान अच्छा है?
छात्र: नहीं
प्रोफेसर: कहाँ शैतान से आया है?
छात्र: ... से भगवान ...
प्रो: यह सही है. बताओ मुझे बेटा, वहाँ इस दुनिया में बुराई है?
छात्र: हाँ.
प्रोफेसर: बुराई हर जगह है, यह नहीं है? और भगवान सब कुछ किया. सही है?
छात्र: हाँ.
प्रोफेसर: (छात्र का जवाब नहीं है) तो जो बुराई बनाया
प्रोफेसर: वहाँ बीमारी है? अनैतिकता? नफरत? कुरूपता? इन सभीभयानक चीजें दुनिया में मौजूद हैं, वे नहीं करते?
छात्र: हाँ, महोदय.
प्रोफेसर: तो, जो उन्हें बनाया (छात्र कोई जवाब नहीं है.)?
प्रोफेसर: विज्ञान कहता है कि तुम 5 होश आप का उपयोग की पहचान करने और निरीक्षणworldaround आप. मुझे, बेटा बताओ ... क्या तुमने कभी भगवान को देखा है?
छात्र: नहीं, श्रीमान.
प्रोफेसर: हमें बताओ अगर आप कभी अपने भगवान के बारे में सुना है?
छात्र: नहीं, श्रीमान.
प्रोफेसर: क्या तुमने कभी अपने भगवान महसूस किया है, अपने परमेश्वर चखा, अपने परमेश्वर गलाना?क्या आप कभी भी उस बात के लिए भगवान के किसी भी संवेदी धारणा थी?
छात्र: नहीं, श्रीमान. मुझे डर है कि मैं नहीं हूँ.
प्रोफेसर: अभी तक आप अभी भी उस पर विश्वास है?
छात्र: हाँ.
प्रोफेसर: अनुभवजन्य परीक्षण योग्य, प्रत्यक्ष प्रोटोकॉल के अनुसार विज्ञान,कहते हैं, अपने भगवान मौजूद नहीं है. तुम क्या कहते हैं, बेटा?
छात्र: कुछ भी नहीं. मैं केवल मेरा विश्वास है.
प्रोफेसर: हाँ. विश्वास. और वह यह है कि समस्या विज्ञान है.
छात्र: प्रोफेसर, वहाँ गर्मी के रूप में इस तरह के एक बात है?
प्रोफेसर: हाँ.
छात्र: और वहाँ ठंड के रूप में इस तरह के एक बात है?
प्रोफेसर: हाँ.
छात्र: नहीं श्रीमान. (व्याख्यान थिएटर बहुत ही शांत हो जाता है नहीं है.घटनाओं के इस मोड़ के साथ).
छात्र: सर, आप की गर्मी बहुत है, गर्मी भी अधिक कर सकते हैं, ज़रूरत से ज़्यादा गरम,मेगा गर्मी, सफेद गर्मी, एक छोटे से गर्मी या कोई गर्मी .. लेकिन हम नहीं हैकुछ भी ठंड बुलाया. हम शून्य से नीचे 458 डिग्री हिट कर सकते हैं जो नहीं हैगर्मी, लेकिन हम किसी भी आगे नहीं जाने के बाद that.There रूप में ऐसी बात नहीं हैठंड. ठंड केवल एक शब्द हम वर्णन उपयोगगर्मी का अभाव. हम ठंड उपाय नहीं कर सकते. गर्मी ऊर्जा ठंडा नहीं हैगर्मी के विपरीत, सर, बस इसे का अभाव है. (पिन ड्रॉपव्याख्यान थिएटर में चुप्पी.)
छात्र: अंधेरे, प्रोफेसर के बारे में क्या? वहाँ अंधेरा रूप में एक बात है?
प्रोफेसर: हाँ. क्या रात है अगर वहाँ अंधेरा नहीं है?
छात्र: आप फिर से गलत कर रहे हैं, श्रीमान. अंधेरे का अभाव हैकुछ. तुम प्रकाश, सामान्य प्रकाश, उज्ज्वल प्रकाश havelow के, चमकती कर सकते हैंप्रकाश ..... लेकिन यदि आप कोई प्रकाश लगातार है, आप havenothing औरयह अंधेरा कहा जाता है, यह नहीं है? Inreality है, न अंधकार. यदि यह थेआप अंधेरे गहरा बनाने के लिए सक्षम हो, तुम नहीं होता?
प्रोफेसर: तो बात आप कर रहे हैं, जवान आदमी क्या है?
छात्र:महोदय, मेरी बात है अपने दार्शनिक आधार त्रुटिपूर्ण है.
प्रोफेसर:त्रुटिपूर्ण? तुम कैसे समझा सकता है?
छात्र:महोदय, आप द्वंद्व के आधार पर काम कर रहे हैं. तुम तर्क है वहाँजीवन और फिर वहाँ मौत, एक अच्छा भगवान और एक बुरी भगवान है. आप कर रहे हैंकुछ परिमित रूप में परमेश्वर की अवधारणा को देखने, हम कुछ कर सकते हैंमापने के. महोदय, यहां तक ​​कि विज्ञान नहीं कर सकते हैं एक सोचा समझा .. इसे इस्तेमाल करता हैबिजली और चुंबकत्व, लेकिन देखा, बहुत कम पूरी तरह से कभी नहीं किया हैया तो one.To दृश्य मौत समझ के रूप में जीवन के विपरीत हो रहा हैअज्ञानी के तथ्य यह है कि मौत एक ठोस बात के रूप में मौजूद नहीं कर सकते.मृत्यु जीवन की विपरीत isnot: सिर्फ it.Now का अभाव मुझे बताओ,Professor.Do आप अपने छात्रों को पढ़ाने है कि वे एक बंदर से विकसित?
प्रोफेसर: यदि आप प्राकृतिक विकासवादी प्रक्रिया के लिए बात कर रहे हैं, हाँ,बेशक, मैं करता हूँ.
छात्र: क्या तुमने कभी अपनी आँखों के साथ विकास मनाया, श्रीमान? (प्रोफेसर एक मुस्कान के साथ उसके सिर हिलाता है, महसूस करने लगे जहांतर्क जा रहा है.)
छात्र: के बाद से कोई भी कभी भी विकास की प्रक्रिया मनायाकाम और नहीं साबित कर सकते हैं कि इस प्रक्रिया को भी एक प्रयास है पर जा रहा है,कर रहे हैं आप नहीं शिक्षणआपकी राय, महोदय? तुम नहीं एक वैज्ञानिक लेकिन एक उपदेशक हैं? (वर्गकोलाहल में है.)
छात्र: वहाँ कक्षा में किसी को भी जो कभी देखा है प्रोफेसरमस्तिष्क है? (वर्ग हँसी में बाहर जाती है.)
छात्र: क्या यहाँ किसी को भी, जो कभी सुना है प्रोफेसरमस्तिष्क, यह महसूस किया, छुआ या यह गलाना? कोई भी ऐसा किया है प्रकट होता है.तो, के अनुसारअनुभवजन्य, स्थिर, प्रत्यक्ष प्रोटोकॉल, विज्ञान के स्थापित नियमोंकहते हैं कि आप कोई मस्तिष्क, श्रीमान. पूरे सम्मान के साथ, महोदय, हम कैसे करते हैंतो अपने व्याख्यान पर भरोसा है, साहब (? कमरे में चुप है. प्रोफेसरछात्र, उसके चेहरे पर साफ झलकती है अथाह.)
प्रोफेसर: मुझे लगता है कि आप उन्हें विश्वास, बेटा, पर ले जाना होगा.
छात्र: यह है सर ... आदमी और भगवान के बीच की कड़ी आस्था है. किसब है कि बातें चलती है और जीवित रहता है.
नायब: मेरा मानना ​​है कि आप वार्तालाप का आनंद लिया है ... और यदि ऐसा है तो तुम हूँ ...शायद अपने मित्रों / सहकर्मियों ही आनंद लेने के लिए चाहते हैं ... नहीं होगातुम? ....यह एक सच्ची कहानी है, और छात्र ** ....... एपीजे के अलावा अन्य कोई नहीं थाअब्दुल कलाम **, ** भारत के पूर्व राष्ट्रपति. 

Wednesday, February 15, 2012

असम के बराक घाटी के चाय बागानों के लोकगीत


असम के बराक घाटी के चाय बागानों के लोकगीत
    
           भारत के स्वतंत्र होने से पूर्व असम को दो भागों में विभक्त किया गया था। ब्रह्मपुत्र उपत्यका एवं सूरमा उपत्यका। ब्रह्मपुत्र नदी असम के उत्तरी भाग में हैं और सूरमा नदी दक्षिणी भाग में बहती है। सिलहट या श्रीहट्ट जो अब बंगलादेश में है विभाजन से पूर्व दक्षिणी असम का भाग था। दक्षिणी असम में सिलहट और कछाड़ दो जिले थे। सिलहट पूर्वी पाकिस्तान में सूरमा नदी के साथ चला गया। कछाड़ जिले में बहनेवाली बराक नदी के नाम पर इसका नाम बराक उपत्यका हो गया और कछाड़ में कछाड़, करीमगंज और हाइलाकान्दी नामक तीन जिले बना दिए गए। दक्षिणी असम संप्रति बराक घाटी के नाम से प्रसिद्ध है।
            बराक घाटी के लोग तब शायद जानते भी नहीं थे कि ईष्ट इंडिया कम्पनी एकदिन यहाँ का राजकार्य अपने हाथ में ले लेंगे। सन 1832 ई. में अंग्रेजों ने कछाड़ जिला अपने अधिकार में लिया। इसके पीछे आर्थिक लाभ ही मुख्य नहीं था, अपितु बर्मी लोगों के हाथ में दखल होने की सम्भवनाओं पर विचार करके अंग्रेजों ने आधिपत्य जमाया था। इस घटना के ढाई दशक बाद ही निर्माण हुआ एक से अधिक चाय-बागानों का। असम में चाय और चाय कारखानों के उज्ज्वल भविष्य की बात सोचकर ही सन 1835 ई. में उत्तर लखीमपुर नामक जिला में चाय की खेती प्रारम्भ हुई। उस समय कछाड़ के जिला शासक टमॉस फिसार थे और उन्होंने अपने प्रतिवेदन में कहा कि कछाड़ की मिट्टी और मौसम भी चाय की खेती के लिए लाभदायक है। फिसार के पेश किए गए प्रतिवेदन की मौलिकता को अंग्रेजों ने स्वीकार किया और चाय की खेती कछाड़ में भी प्रारम्भ हुई। सन 1855 ई. में
जिला शासक वर्नर नामक अंग्रेज ने बंगाल सरकार के सचिव को चाय की खेती के पक्ष में जो पत्र लिखे उसके परिणाम स्वरूप सचिव के अनुमोदन सापेक्ष और आदेशानुसार वर्नर कलकत्ता से अनेक व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को कछाड़ में आकर सुविधापूर्वक शर्तों के साथ चाय की खेती के लिए बुलाया गया। उसी समय से कछाड़ में चाय की खेती के लिए एक बागान को तीन सौ एकड़ से लेकर एक हजार एकड़ जमीन दी गई। वर्नर के बुलाने से जो कछाड़ में सर्वप्रथम चाय की खेती के लिए आए उनका नाम विलयमसन था। ‘बरसांगन’ कछाड़ का प्राचीनतम चाय बागान है। देखते ही देखते यहाँ बहुत से चाय बागानों का निर्माण हो गया। भौगोलिक कारणों से यहाँ चाय की खेती टीलों पर की गई। पहले चाय बागानों का निर्माण हुआ बराक के उत्तर में बराल पहाड़ से निकली हुई शृंखलाओं में, किन्तु इस तरह के जमीन सीमित रहने के कारण बराक के दक्षिण में भी खेती प्रारम्भ हुई। प्रथम जिला शासक ने अपने प्रतिवेदन में कहा था कि कछाड़ में चाय बागानों के लिए श्रमिकों या मजदूरों की अभाव नहीं होगा, जरूरत पड़े तो सिलहट से मजदूर लाये जायेंगे। कालक्रम में देखा गया कि स्थानीय मजदूर या श्रमिकों से चाय उत्पादन का काम नहीं चल रहा है। फलस्वरूप दलालों के जरिए बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल से मजदूरों की आमदानी शुरू हुई।
            बराक – सूरमा घाटी में चाय की खेती के कारण ही श्रमिकों की आमदानी शुरू हुई। ब्रिटिश अधिकार से पहले यहाँ जो नरगोष्ठी या जनजातियाँ आपस में मिलजुलकर रह रही थीं इनसे चाय बागानों का कष्ट साध्य काम करवाना सम्भव नहीं है। इस बात को चाय के पूँजीपति लोग उपलब्ध करके ही सर्दारों, दलालों का उपयोग किया तथा बराक – ब्रह्मपुत्र के चाय बागानों में भारत के भिन्न – भिन्न प्रान्तों से आदिवासी लोगों को लाया गया। श्रमिकों की मांग में दिन – दिन बृद्धि होने के फलस्वरूप श्रमिक संग्राहक दलालों का नज़र भारत के जन – जाति समूह के ऊपर पड़ी। ब्रिटिश शासक भी श्रमिकों की मांग पूरी करने के उद्देश्य से पहले से ही इस देश के जन – जातियों के ऊपर कानून के दाव – पेचों से जमीन और
जीविका से वंचित कर रहे थे। इन असहाय लोगों के एक – एक अंश या भाग को दलालों के माध्यम से चाय बागानों में भेजते रहे। दुःखित – पीड़ित दक्षिण नरगोष्ठी के प्रायः पचास कौम के लोग उस समय बराक – ब्रह्मपुत्र घाटी में आने के लिए विवश किए गए। इनमें नाईडू, तेलिंगा, रेली जैसे हैं वैसे ही बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश से उरांग, मुँडा, सारिया, नागेशिया, साँउताल, माल, कूर्मी, नूनिया, अहिर, ग्वाला, कानू, कहार, कैरी, कामार, रविदास आदि उड़ीसा से आए थे पाँड, कोदाल, दास, ताँतुआ आदि कौम की जनता। नए – नए चाय बागानों का निर्माण ही नहीं हुआ, अपितु जंगल काटकर बागान बनाना व लोगों का बसना भी शुरू हुआ। इसी कारण फिर से सामाजिक परिवर्तन का स्रोत प्रबल हो उठा। बराक घाटी की जमीन में लाए गए विभिन्न प्रान्तों के लोगों से निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। नया समाज बना। विभिन्न जातिओं के मेल से सामाजिक आचार – विचार का आदान – प्रदान और उससे नई संस्कृति का निर्माण हुआ।  एक नई भाषा बनी जिसे यहाँ ‘बागानी भाषा’ कहा जाता है। इस भाषा में हिन्दी, बँगला, उड़ीया आदि भाषाओं के शब्द पाये जाते हैं।
        असम के बराक घाटी के चाय बागानों में एक प्रकार के लोकगीत गाये जाते हैं जिसे मूलतः झूमर गीत कहा जाता है। झूम – झूमकर गाये जाने वाले गीत ही झूमर हैं। चाय बागान के विशिष्ट लोकगीत को साधारणतः बारहमासा गीत भी कहा जाता है, कयोंकि झूमर किसी विशेष ॠतु, महीने या समय सीमा के बीच के गीत नहीं हैं। झूमर गीत पूरे साल भर गाये जाते हैं। समय का विधि – निषेध झूमर के लिये नहीं है। विषय वस्तु की दृष्टि से झूमर के चार भाग हैं --- 1) लौकिक प्रेम विषयक, 2) राधाकृष्ण प्रेम विषयक, 3) पौराणिक और 4) सामाजिक। इन झूमरों के उदाहरण प्रस्तुत हैं ----
1)  प्रेमेर कथा बोलते नाय, प्रेमेर कथा कोयते नाय।
प्रेमेर कथा बोलते गेले तारा होय तो साधुजन।
प्रेम करो ना रे मन, प्रेमे जाति कुल जाय आर जाय जीबन॥
अर्थात, प्रेम के शब्द बोलना नहीं, प्रेम के शब्द कहना नहीं। प्रेम के शब्द कहने से व्यक्ति पण्डित हो जाता है। प्रेम करना नहीं मन, प्रेम में जातिकुल जाता है और जाता है जीवन।

2)  एमनि पिरितेर गुन जेमन काँचा आमे मेशे गो नून।
आमे नूने मेशा-मेशि होय वैशाख मासे।
अ-भाव करे जे भाव राखते नारे, सेजन जाय गो नरके॥
अर्थात, ऐसे ही प्रीति के गुण जैसे वैशाख महीने में कच्चे आम के साथ नमक मिलता है। प्रेम के सम्बन्ध जोड़कर जो सम्बन्ध नहीं रख पाते वह जाते हैं नरक में।
            राधाकृष्ण प्रेम विषयक झूमर के उदाहरण प्रस्तुत हैं ----
            संजुवेला कही गेला मनी रमनी, आहे चतुर मनी सुनो मनोहर बानी
            मबुलो भेसो होई येबुनी, परी जाती पुष्प मेयाथेली बेनी।
अर्थात, राधा सज - सवँरकर बैठी हुई थी। उसकी सखिओं ने पूछा कि कया बात है? तो राधा मुस्कराते हुए बोली कि कृष्ण मुझे यमुना के किनारे मिले थे और कहा था कि वे शाम को यहाँ मुझसे मिलने आयेंगे। उसकी सखियाँ यह बात सुनते ही तरह – तरह के पुष्प लाकर पलंग को सजाने लगी।
            सामाजिक झूमर के उदाहरण प्रस्तुत हैं ---
चा-बागाने जनम हामदेर, चा-बागाने करम गो, करम हामरा रोजेय करि,
श्रम हामदेर पूजा गो, ओ दादा धनिराम,
चा-बागाने बाँचे थाका बोड़ो कठिनकाम।
पाति तुलि डगा – डगा, ओजन करे बाबू गो, ओजोनेते बाबू गिना,
केजी – केजी मारे गो, ओ दादा धनिराम,
चा-बागाने कुदाल मारा बोड़ो कठिन काम।
सारा हाप्ता काम, हाप्ताय एकदिन छूठि गो, छूटिर दिनटाते हामदेर,
तलप रेशन छाड़ा गो, ओ दादा धनिराम,
चा-बागाने बाँचे थाका बोड़ो कठिनकाम।
अर्थात, चाय – बागान में हमने जन्म लिया और यहीं पर हमारा कर्म है। कर्म तो हम रोज ही करते हैं और श्रम हमारे लिए पूजा है, परन्तु चाय – बागान में जीवित रहना अत्यन्त कठिन कार्य है। कच्ची चाय – पत्ती तोड़ते हैं, उसमें से वजन करने वाले जो कर्मचारी होते हैं वे चोरी कर लेते हैं। पूरा सप्ताह काम करने के उपरान्त एकदिन छुट्टी मिलती है उसमें भी मजदूरी, राशन कुछ नहीं मिलता है। इसलिए चाय – बागान में जीवित रहना अत्यन्त कठिन कार्य है।
            इस प्रकार के अनेकों लोकगीत असम के चाय बागानों में भरे पड़े हैं।
     

गंगटोक


गंगटोक

गंगटोकसिक्किम की राजधानी है। सिक्किम राज्य भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक राज्य है। पहाड़ी अचंल होने के कारण यहाँ पर्यटकों का आवागमन होता रहता है। दरासल गंगटोक शब्द का शाब्दिक अर्थ कुछ इस प्रकार है गंग का अर्थ गंगा (नदी) से सम्बन्धित है और टोक का अर्थ है मन्दिर। इस प्रकार से गंगटोक का अर्थ हुआ गंगा का मन्दिर।  यहां देखने लायक कई स्‍थान हैं जैसे, गणेश टोक, हनुमान टोक तथा ताशि व्‍यू प्‍वांइट। अगर आप गंगटोक घूमने का पूरा लुफ्त उठाना चाहते हैं तो इस शहर को पैदल घूमें। यहां से कंचनजंघा नजारा बहुत ही आकर्षक प्रतीत होता है। इसे देखने पर ऐसा लगता है मानो यह पर्वत आकाश से सटा हुआ है तथा हर पल अपना रंग बदल रहा है। अगर आपकी बौद्ध धर्म में रुचि है तो आपको इंस्‍टीट्यूट ऑफ तिब्‍बतोलॉजी जरुर घूमना चाहिए। यहां बौद्ध धर्म से संबंधित अमूल्‍य प्राचीन अवशेष तथा धर्मग्रन्‍थ रखे हुए हैं। यहां अलग से तिब्‍बतियन भाषा, संस्‍कृति, दर्शन तथा साहित्‍य की शिक्षा दी जाती है। इन सबके अलावा आप प्राचीन कलाकृतियों के लिए पुराने बाजार, लाल बाजार या नया बाजार भी घूम सकते हैं।
छांगू झील
माना जाता है कि जिस समय आवागमन की सुविधा नहीं थी उस समय तिब्‍बतियन भिक्षुक भारत में प्रवेश करते समय  यहाँ विश्राम करते थे इस अर्थ में छांगू का अर्थ विश्राम करने का स्थान भी है। गंगटोक से 40 किलोमीटर की दूरी पर यह झील स्थित है। यह झील चारों ओर से बर्फीली पहाड़ियों से घिरा हुआ है। झील एक किलोमीटर लंबा तथा 50 फीट गहरा है। यह अप्रैल महीने में पूरी तरह बर्फ में तब्‍दील हो जाता है। सुरक्षा कारणों से इस झील को एक घंटे से अधिक देर तक नहीं घूमा जा सकता है। जाड़े के समय में इस झील में प्रवास के लिए बहुत से विदेशी पक्षी आते हैं। इस झील से आगे केवल एक सड़क जाती है। यही सड़क आगे नाथूला दर्रे तक जाती है। यह सड़क आम लोगों के लिए खुला नहीं है। लेकिन सेना की अनु‍मति लेकर यहां तक जाया जा सकता है


रूमटेक मठ
रुमटेक घूमे बिना गंगटोक का सफर अधूरा माना जाता है। यह मठ गंगटोक से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मठ 300 वर्ष पुराना है। रुमटेक सिक्किम का सबसे पुराना मठ है। 1960 के दशक में इस मठ का पुननिर्माण किया गया था। इस मठ में एक विद्यालय तथा ध्‍यान साधना के लिए एक अलग खण्‍ड है। इस मठ में बहुमूल्‍य थंगा पेंटिग तथा बौद्ध धर्म के कग्‍यूपा संप्रदाय से संबंधित वस्‍तुएं सुरक्षित अवस्‍था में है। इस मठ में सुबह में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा की जाने वाली प्रार्थना बहुत कर्णप्रिय होती है।

इनहेंची मठ
इनहेंची का शाब्दिक अर्थ होता है निर्जन। जिस समय इस मठ का निर्माण हो रहा था। उस समय इस पूरे क्षेत्र में सिर्फ यही एक भवन था। इस मठ का मुख्‍य आकर्षण जनवरी महीने में यहां होने वाला विशेष नृत्‍य है। इस नृत्‍य को चाम कहा जाता है। मूल रुप से इस मठ की स्‍थापना 200 वर्ष पहले हुई थी। वर्तमान में जो मठ है वह 1909 ई. में बना था। यह मठ द्रुपटोब कारपो को समर्पित है। कारपो को जादुई शक्ति के लिए याद किया जाता है।

Wednesday, July 27, 2011

सनकी और पागल


सनकी और पागल
          पाठक वर्ग को इस नाम से हैरानी तो होगी किन्तु ध्यान देने योग्य यह है कि सनकी और पागल लक्षणार्थ है न कि कुछ ओर अर्थ में। दरअसल सनकी एक स्त्री है और पागल यहाँ पुरूष है। अब यह संस्मरण एक समय की कथा है जब मैं सर्दीयों की छूटी में अपना घर गया हुआ था। छोटा सा शहर है नाम से अधिकतर लोग भले ही परिचित न हो किन्तु कुछ लोग अवश्य परिचित होंगे ---- सिलचर। सिलचर शहर एक ऐसी जगह है जहाँ मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज तथा विश्वविद्यालय जैसे तीन बड़े शैक्षिक संस्थाएँ हैं जिसके चलते यहाँ रोजाना कुछ न कुछ कथा अवश्य मिल ही जाती है चाहे वह प्रेम कथा हो या कुछ अन्य कथाएँ।
          सनकी के विषय में कहने जाऊँ तो मुझे लगता है कि उसकी पूरी कथा कहना मेरे लिए असम्भव नहीं तो मुश्किल जरूर है क्योंकि सनकी एक अविवाहित लड़की है जिसकी आयु तकरीबन 26 साल के आस-पास है और इस समय वह विश्वविद्यालय में शोधकार्य से संलग्न है। सनकी का प्रेम सम्बन्ध एक ऐसे लड़के के साथ था जिसने इसको समझा नहीं और सनकी ने भी उसके प्रेम में वह सब कुछ किया जो उसके स्वभाव के विपरीत रहा। किन्तु फिर भी उस लड़के ने सनकी को न अपनाकर छोड़ गया। कुछ दिनों तक सनकी इस प्रेम की सदमा को सहती रही और धीरे-धीरे उसके मस्तिष्क में धुँधलापन छाने लगा और सनकी लगभग उस बीती बातों को भूलकर अपना शोधकार्य की ओर अग्रसर होने लगी थी कि इसी बीच एक लड़का जिसे मैंने यहाँ पागल कहा हैं सनकी के साथ टकरा गया। रुचिकर विषय यह है कि शोधकार्य के दौरान पागल और सनकी की मुलाकात कभी कहीं हो चुकी थी, किन्तु दोनों की आपस में कभी बात-चीत नहीं हुई थी। जिस दिन दोनों आमने-सामने हुए पागल ने सनकी के सामने साथ घर लौटने का प्रस्ताव रखा। सनकी ने इनकार तो नहीं किया वरन् कुछ समय इन्तज़ार करने के लिए कहकर अपना काम जल्दी-जल्दी निपटाने लगी। यहाँ एक बात पाठकों के सामने लाना चाहूँगा कि सनकी और पागल एक ही विश्वविद्यालय से शोध कार्य कर रहे थे। उस दिन दोनों एक दूसरे से भली-भाँति परिचय प्राप्त कर साथ में ही शहर व घर लौटे। घर लौटने के दौरान रास्ते में दोनों आपस में काफ़ी घुल-मिल गए।
          सप्ताह भर बाद पागल को बाहर जाना पड़ा तो वह चला गया। अचानक एक रात को सनकी का मोबाइल बज उठा और सनकी का माथा ठनका क्योंकि मोबाइल में जो नम्बर आ रहा था वह अपरिचित भी तथा रात को था फिर भी सनकी ने कॉल कर्ता को उत्तर देना उचित समझा और हेलो के स्वर में जैसे ही उत्तर दिया चौंक गयी क्योंकि कॉल कर्ता कोई ओर नहीं पागल था। चौंकाने वाली बात यह है कि पागल बाहर जाने से पहले सनकी से कोई नम्बर भी नहीं लिया था। फिर तो दोनों एक दूसरे से काफी लम्बे समय तक बतियाते रहे और यह सिलसिला कुछ दिनों तक जारी रहा। एक दिन पागल ने सनकी को कॉल करके प्रेम का प्रस्ताव रखा किन्तु सनकी ने उस प्रस्ताव का बहिष्कार किया तथा पागल को समझाने का प्रयास किया कि यह प्रेम सम्बन्ध सम्भव नहीं है। अब प्रश्न उठता है कि दोनों एक-दूसरे से भली-भाँति परिचित होने के बावजूद भी प्रेम सम्बन्ध क्यों सम्भव नहीं हुआ क्या वजह रही जिसके कारण सनकी ने यह निर्णय लिया?  
          पागल बाहर से लौटने के बाद सनकी से मुलाकात की और इसी विषय पर उन दोनों की बातचीत होती रही। धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे को पसन्द करने लगे किन्तु दोनों के मन में यह शंका बनी हुई थी कि आखिर कब तक यह सम्बन्ध सम्भव है; क्योंकि सनकी जिस घर-परिवार से थी उस परिवार में इस सम्बन्ध को कभी स्वीकार नहीं करेंगे इस बात से दोनों ही अवगत थे। सनकी हमेशा पागल को समझाती रहती थी कि हमारा प्रेम सम्बन्ध आगे बढ़ाना सम्भव नहीं है और पागल भी इस बात को सुनता रहता था। एक रोज की बात है भारी बारिश हो रही थी पागल को उस रोज रात की गाड़ी से बाहर भी जाना था। दोनों घर से सुबह ही निकल गए और बारिश में भीगते हुए दोनों शहर से दूर चले गये और शाम तक साथ में रहे। सनकी बीच-बीच में कहती भी रही कि “मैं सनकी ही हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि हमारा सम्बन्ध किसी भी हालत में सम्भव नहीं है फिर भी न जाने कयों मैं तुमसे मिलती हूँ, तुमसे बातें करती हूँ और तुम्हे पसन्द भी………। तुम्हारे कहने पर आज भारी बारिश में भी घरवालों का कहना न मानकर तुमसे मिलने आयी हूँ।”
                                                  डॉ. रतन कुमार