Wednesday, July 27, 2011

सनकी और पागल


सनकी और पागल
          पाठक वर्ग को इस नाम से हैरानी तो होगी किन्तु ध्यान देने योग्य यह है कि सनकी और पागल लक्षणार्थ है न कि कुछ ओर अर्थ में। दरअसल सनकी एक स्त्री है और पागल यहाँ पुरूष है। अब यह संस्मरण एक समय की कथा है जब मैं सर्दीयों की छूटी में अपना घर गया हुआ था। छोटा सा शहर है नाम से अधिकतर लोग भले ही परिचित न हो किन्तु कुछ लोग अवश्य परिचित होंगे ---- सिलचर। सिलचर शहर एक ऐसी जगह है जहाँ मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज तथा विश्वविद्यालय जैसे तीन बड़े शैक्षिक संस्थाएँ हैं जिसके चलते यहाँ रोजाना कुछ न कुछ कथा अवश्य मिल ही जाती है चाहे वह प्रेम कथा हो या कुछ अन्य कथाएँ।
          सनकी के विषय में कहने जाऊँ तो मुझे लगता है कि उसकी पूरी कथा कहना मेरे लिए असम्भव नहीं तो मुश्किल जरूर है क्योंकि सनकी एक अविवाहित लड़की है जिसकी आयु तकरीबन 26 साल के आस-पास है और इस समय वह विश्वविद्यालय में शोधकार्य से संलग्न है। सनकी का प्रेम सम्बन्ध एक ऐसे लड़के के साथ था जिसने इसको समझा नहीं और सनकी ने भी उसके प्रेम में वह सब कुछ किया जो उसके स्वभाव के विपरीत रहा। किन्तु फिर भी उस लड़के ने सनकी को न अपनाकर छोड़ गया। कुछ दिनों तक सनकी इस प्रेम की सदमा को सहती रही और धीरे-धीरे उसके मस्तिष्क में धुँधलापन छाने लगा और सनकी लगभग उस बीती बातों को भूलकर अपना शोधकार्य की ओर अग्रसर होने लगी थी कि इसी बीच एक लड़का जिसे मैंने यहाँ पागल कहा हैं सनकी के साथ टकरा गया। रुचिकर विषय यह है कि शोधकार्य के दौरान पागल और सनकी की मुलाकात कभी कहीं हो चुकी थी, किन्तु दोनों की आपस में कभी बात-चीत नहीं हुई थी। जिस दिन दोनों आमने-सामने हुए पागल ने सनकी के सामने साथ घर लौटने का प्रस्ताव रखा। सनकी ने इनकार तो नहीं किया वरन् कुछ समय इन्तज़ार करने के लिए कहकर अपना काम जल्दी-जल्दी निपटाने लगी। यहाँ एक बात पाठकों के सामने लाना चाहूँगा कि सनकी और पागल एक ही विश्वविद्यालय से शोध कार्य कर रहे थे। उस दिन दोनों एक दूसरे से भली-भाँति परिचय प्राप्त कर साथ में ही शहर व घर लौटे। घर लौटने के दौरान रास्ते में दोनों आपस में काफ़ी घुल-मिल गए।
          सप्ताह भर बाद पागल को बाहर जाना पड़ा तो वह चला गया। अचानक एक रात को सनकी का मोबाइल बज उठा और सनकी का माथा ठनका क्योंकि मोबाइल में जो नम्बर आ रहा था वह अपरिचित भी तथा रात को था फिर भी सनकी ने कॉल कर्ता को उत्तर देना उचित समझा और हेलो के स्वर में जैसे ही उत्तर दिया चौंक गयी क्योंकि कॉल कर्ता कोई ओर नहीं पागल था। चौंकाने वाली बात यह है कि पागल बाहर जाने से पहले सनकी से कोई नम्बर भी नहीं लिया था। फिर तो दोनों एक दूसरे से काफी लम्बे समय तक बतियाते रहे और यह सिलसिला कुछ दिनों तक जारी रहा। एक दिन पागल ने सनकी को कॉल करके प्रेम का प्रस्ताव रखा किन्तु सनकी ने उस प्रस्ताव का बहिष्कार किया तथा पागल को समझाने का प्रयास किया कि यह प्रेम सम्बन्ध सम्भव नहीं है। अब प्रश्न उठता है कि दोनों एक-दूसरे से भली-भाँति परिचित होने के बावजूद भी प्रेम सम्बन्ध क्यों सम्भव नहीं हुआ क्या वजह रही जिसके कारण सनकी ने यह निर्णय लिया?  
          पागल बाहर से लौटने के बाद सनकी से मुलाकात की और इसी विषय पर उन दोनों की बातचीत होती रही। धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे को पसन्द करने लगे किन्तु दोनों के मन में यह शंका बनी हुई थी कि आखिर कब तक यह सम्बन्ध सम्भव है; क्योंकि सनकी जिस घर-परिवार से थी उस परिवार में इस सम्बन्ध को कभी स्वीकार नहीं करेंगे इस बात से दोनों ही अवगत थे। सनकी हमेशा पागल को समझाती रहती थी कि हमारा प्रेम सम्बन्ध आगे बढ़ाना सम्भव नहीं है और पागल भी इस बात को सुनता रहता था। एक रोज की बात है भारी बारिश हो रही थी पागल को उस रोज रात की गाड़ी से बाहर भी जाना था। दोनों घर से सुबह ही निकल गए और बारिश में भीगते हुए दोनों शहर से दूर चले गये और शाम तक साथ में रहे। सनकी बीच-बीच में कहती भी रही कि “मैं सनकी ही हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि हमारा सम्बन्ध किसी भी हालत में सम्भव नहीं है फिर भी न जाने कयों मैं तुमसे मिलती हूँ, तुमसे बातें करती हूँ और तुम्हे पसन्द भी………। तुम्हारे कहने पर आज भारी बारिश में भी घरवालों का कहना न मानकर तुमसे मिलने आयी हूँ।”
                                                  डॉ. रतन कुमार    

Wednesday, June 8, 2011

महादेवी वर्मा और ‘मेरा परिवार’


          आधुनिक हिन्दी कविता में छायावाद अपनी काव्यात्मक समृद्धि, आंतरिक ऊर्जा और दार्शनिक गम्भीरता के लिए उल्लेखनीय है। स्वाधीनता की चेतना, आत्मवादी दृष्टि, सौन्दर्य चित्रण और विद्रोह भाव के लिए इसे सदा रेखांकित किया जाएगा। महादेवी वर्मा आधुनिक युग की प्रमुख कवियित्री के रूप में अधिक ख्यात हैं। परन्तु जब साहित्य-अध्येता उनके गद्य-साहित्य से थोड़ा भी परिचय प्राप्त करता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कवियित्री का गद्यकार रूप कम महत्वपूर्ण नहीं है। उनका जन्म फाल्गुन पूर्णिमा (वसन्तोसव) के दिन 1907 ई. उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। महादेवी वर्मा छायावाद की एक महत्वपूर्ण कवियित्री हैं। छायावादी काव्य में अपनी अनुभूति की सूक्ष्मता, चिन्तन की गम्भीरता, करुणा, प्रेम, रहस्य और गीतात्मक चेतना के कारण महादेवी एक विशिष्ट व्यक्तित्व प्राप्त करती हैं। प्रत्येक रचनाकार अपने भीतर एक गहरी संवेदना का अनुभव करता है और अपनी अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए वह छ्टपटाता रहता है। अपनी अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए उसे साहित्य के विविधांगों का प्रयोग करना पड़ता है, कयोंकि जितना बड़ा विषय होगा उतनी बड़ी रचना होगी। विषय के अनुसार ही कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध आदि विधाओं का सृजन होता है। महादेवी का गद्य उनकी कविता से कम महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि प्रासंगिकता की दृष्टि से तो उनका गद्य अधिक अर्थवान है। यह ज़रूर है कि उनका गद्य भी उनके संवेदनशील कवि - हृदय से ही सम्भव हुआ  है पर उल्लेखनीय है कि उनके गद्य की पूर्णतः मौलिक एवं स्वतंत्र सत्ता है।
       ‘मेरा परिवार’ (1971 ई.) सस्मरणों के चौथे संग्रह का नाम है। इसमें महादेवी जी ने अपने परिवार के अभिन्न अंग बने कुछ पशु – पक्षियों के रेखाचित्र उभारे हैं। जिसमें नीलकंठ (मोर), गिल्लू (गिलहरी), सोना (हिरणी), दुर्मुख (खरगोश), गौरा (गाय), नीलू ( कुत्ते) और निक्की (नेवले), रोजी (कुतिया) तथा रानी (घोड़ी) नामक सात रेखाचित्र हैं।
            ‘मेरा परिवार’ का सबसे पहले नीलकण्ठ (मोर) को महादेवी जी द्वारा नखासकोने से खरीदे जाने से लेकर उसके धीरे-धीरे बढ़ने और महादेवी जी के पशु – पक्षियों के परिवार में सम्मिलित होने की कहानी है। राधा नामक मोरनी के साथ इस नीलकण्ठ नामक मोर के नृत्य, वर्षा ॠतु के उल्लास, बसन्त ॠतु के उद्दीपन आदि चित्र प्रस्तुत किया गया है।
      इस संग्रह का दूसरा पशु पात्र गिल्लू नामक गिलहरी के जन्म से लेकर उसके बड़ी होने और महादेवी के ऊपर सिर से पैर तक चढ़ने – उतरने तथा महादेवी जी के अनुपस्थिति में कुछ भी न खाने – पीने और अन्त में उनकी उँगली से चिपक कर करुणान्त हो जाने की घटनाएँ है।
           ‘मेरा परिवार’ का तीसरा पात्र सोना नामक हिरणी की वाल्यावस्था से लेकर उसके उछलने – कुदने, दूध पीने, घंटी बजने पर प्रार्थना के मैदान पहुँचने और स्नेहवशत महादेवी जी को छलांग कर निकल जाने की घटनाओं को समाविष्ट किए हुए हैं।
            संग्रह का चौथा मानवेतर पात्र ‘दुर्मुख’ खरगोश के महादेवी के पशु – पक्षी परिवार में सम्मिलित होने पर अकारण क्रोधी स्वभाव के कारण महादेवी द्वारा दुर्वासा नाम रखने, उसके प्रियदर्शन व्यक्तित्व, मिट्टी खोदकर सुरंग बनाने, कबूतर मोर आदि पर झपटने का उल्लेख है। बाद में महादेवी द्वारा ‘हिमानी’ नामक खरगोश – वधू को उसके साथ रहने की व्यवस्था करने और इस क्रोधी दुर्मुख द्वारा हिमानी के बच्चों को घायल करने और अंत में एक साँप के बच्चे द्वारा काटे जाने पर मारे जाने की घटनाएँ हैं।
            संग्रह का पाँचवाँ प्राणी पात्र ‘गौरा’ गाय के बहिरंग व्यक्तित्व से प्रारम्भ करके उसके महादेवी जी के यहाँ पहुँचने पर स्वागत करने से लेकर उसके प्रियदर्शन स्वरूप, मन्थर गति के सौन्दर्य, महादेवी के पशु – पक्षी परिवार में एकदम हिल – मिल जाने के स्वभाव, मानवीय स्नेह के समान आकुलता, लालमणी नामक एक बछड़े को जन्म देने और दो – तीन मास के उपरान्त उसके निरन्तर दुबले होते चले जाने (किसी दुष्ट द्वारा सुई खिला देने के कारण) तथा गौरा के करुणान्त हो जाने की घटनाएँ हैं।
            छठवाँ पात्र ‘नीलू’ कुत्ते की कथा से जुड़ी है। भूटिये बाप और अल्सेशियन माँ के कारण वर्णसंकर नीलू के धूपछाँही रंग तथा बल और स्वभाव में भी वैशिष्ट्य होने के कारण अलभ्यदर्पयुक्त व्यक्तित्व की प्रशंसा है।
            ‘मेरा परिवार’ का अंतिम तथा सातवें संस्मरण में निक्की (नेवले), रोजी (कुतिया) और रानी (घोड़ी) की कहानी में उस अद्भुत मैत्री का परिचय दिया गया है, जो इन पशुओं में परस्पर विद्यमान थी। यह संस्मरण उस समय की कहानी कहता है, जब महादेवी जी बालिका थीं और उनके पिताजी के परिवार में ये तीनों पशु रहा करते थे।
प्रस्तुत पुस्तक के सम्बन्ध में इलाचन्द्र जोशी जी का कथन उल्लेखनीय हैं, “ वास्तविकता तो यह है कि महादेवी ने कुछ विशिष्ठ मानवेतर प्राणियों के प्रति अपनी जिस सहज, सौहार्द्र और एकांत आत्मीयता की अभिव्यंजना का जो अपूर्व कला – कौशल अपने इन चित्रों में व्यक्त किया है, वह केवल उनकी अपनी ही कला की विशिष्टता की दृष्टि से नहीं वरन् संसार – साहित्य की इस कोटि की कला के समग्र क्षेत्र में भी बेमिसाल और बेजोड़ हैं। ये कृतियाँ मानवीय भावज्ञता, संवेदना और कलात्मक प्रतिभा के अपूर्व निदर्शन की दृष्टि से शाब्दिक अर्थ में अपूर्व और अदभुत कलात्मक चमत्कार के नमूने है। ‘करौ काह मुख एक प्रशंसा?’ एक मुख से उनकी कला की प्रशंसा कैसे करुँ! कयोंकि ये शब्द चित्रण अनेक दृष्टिकोणों से प्रशंसा की अतिशयोक्ति की सीमा को भी पार कर जाते हैं।”
            ‘महादेवी की गद्य कृतियाँनामक लेख में रामचन्द्र तिवारी जी प्रस्तुत पुस्तक के विषयवस्तु की चर्चा करते हुए लिखते हैं, “मेरा परिवारमें स्मृति सन्दर्भों के सहारे जिनकी कथा अंकित की गई है वे हैं - नीलकंठ (मोर), गिल्लू (गिलहरी), सोना (हिरणी), दुर्मुख (खरगोश), गौरा (गाय), नीलू ( कुत्ते) और निक्की (नेवले), रोजी (कुतिया) तथा रानी (घोड़ी)। इस सभी प्राणीयों की जीवन कथा भी मर्मस्पर्शिनी करुण कथा ही है। महादेवी की सहानुभूति और करुण मानव जगत तक ही सीमित न रहकर पशु पक्षियों तक प्रसारित है। उन्होंने पशु - पक्षियों को भी माँ की ममता दी है। उन्हें पाला है। बड़ा किया है। बीमारी में दवा की है। उनके हर्ष में पुलकित हुईं हैं और दु:ख में व्यथित। उनके वियोग में उदास हुईं हैं और संयोग में उल्लसित। ये पशु-पक्षी उनके जीवन सहचर ही नहीं उनके परिवार के अंग बन गये हैं। ‘मेरा परिवार’ हिन्दी साहित्य में ऐसी अकेली कृति है जिसमें मानवीय करुणा की स्निग्धता और शीतलता ने पशुओं को भी व्यक्तित्व प्रदान किया है।”